सर्व पूज्य स्वतंत्रता सेनानियो की सतत् सवायित सुमन श्रंखला को समग्र संसार मे सर्वोच्च स्तरीय शोभायमान करने वालो मे मेवाड़ अंचल के समर भवानी रणचण्डी के अमर पूजारी, अवर्णनीय अनन्त रक्तिम आभायुक्त जन-जन के लाड़ले रूपाजी की कर्मस्थली एवं प्राणोत्सर्ग की पावन नगरी बेगू क्षेत्र के कृषक वर्ग के गौरव स्व. श्री देवीलाल जी अठवाल और श्रीमती प्यारीबाई की गृहस्थ वाटिका मे दिनांक 24-2-1954 को श्री जमनालाल अठवाल नामक एक ऐसा श्यमवणी पुष्प खिला जिसने एक सराहनीय कुल दीपक की भांति ही नही वरन् शिक्षा विभाग के चित्तौड़गढ़ जिले को दीपावली की तरहा रोशन करने बाबत् कई बरसो तलक, लम्बी कामयाबी मशक्कत मे एक लाजवाब मिसाल का किरदार निभाया।
स्नातक तक अध्ययन करने वाले श्री जमनालाल ने भाई प्रवीण कुमार और श्यामलाल,बहिन प्रेमदेवी, विमल, मीरा आर्य और कई सहपाीठयो के साथ-साथ खेलेते-कुदते जन्म स्थान नन्दवाई से ही प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की। माध्यमिक शिक्षा रा.उ.मा.वि. बेगू से और स्नातक शिक्षा हिन्दी, भूगोल, राजनीती शास्त्र विषयो के साथ जिला मुख्यालय चित्तौड़गढ़ से सन् 1977 मे प्राप्त कर तदुपरान्त अर्थोपार्जन हेतु सरकारी दफ्तरो की ओर मुखातिब हुए। भाइयो और अनन्य बाल सखाओ के समेकित कोलाहल मिश्रित स्नेहिल स्चरो की अनुगूंजित प्रतिध्वनियो से सतत अनुप्रेरित किशोखय मे कर्म और भाग्य के युगल तरंगो से सुसज्जति यह प्रगति रथ, समय सारथी के पदचिन्हो का आदर्थ अनुकरण करता हुआ दिनांक 16-11-1978 को कनिष्ठ लिपिक के पद पर चयनोपरान्त प्रसन्न मुद्रा मे रा.मा.वि. अरनिया जोशी अर्थात् सफलता के प्रथम सोपान पर पहुचा। एक नौसीखिए के रूप मे अपनी सराहनीय सेवाएं देते हुए “जननी जन्म भुमिश्च स्वर्गादपि गरियसी के मूल मन्तव्य को आत्मसात् करते हुए 3 वर्षो मे ही बचपन की बारम्बार कई बाल-स्मृतियो के मौन आमन्त्रण पर स्थानान्तरण द्वारा आप जन्म स्थली नन्दवाई आए। सतरंगी मौसम के बदलते मिजाज की तरहां तबादलो और तरक्कियो से आपके कर्म-क्षेत्रो मे समय-समय पर तब्दीलियां होती रही।
दिनांक 9-2-1990 को वरिष्ठ लिपिक के पद पर पदोन्नत होकर रा.मा.वि. एकलिंगपुरा (चित्तौड़गढ़) गए। बस्सी और बिछोर मे एक जुग तक पदानुकूल चिरस्मरणीय सेवाओ सहित घाट-घाट का पानी पीते हुए रमता जोगी बहता पानी“ की उक्ति को आंशिक चरितार्थ करने हुए प्रगति पथ का यह अथक पथिक का दिनांक 10-2-2013 को ऐसे शुभ मुर्हूत मे रा.उ.मा.वि. सेती आगमन हुआ कि विद्यालय आपके सरकारी सफर का आखिरी मुकाम मुकर्रर रहा।
उच्च अधिकारियो के दिशा-निर्देशो की चाॅक पर जिम्मेदारियो की खुशबू से सुवासित कर्तव्य परायणता की सिद्ध माटी से सुनिर्मित कठोर मेहनत और पसीने के आँवां पर परिपक्व नैसर्गिक हास्य-शैली से परिर्पूएा यह अक्षय पावन घट शबनम सी आँखो सदृथ्श छलकता हुआ हीरे-मोती जैसे तोहिन कणो से युक्त आज एक प्राचीन मौन-साधना शिखर के स्वर्णिम कलश जैसा प्रतीत हो रहा है। सफरनामे मे इतिश्री लिख आखिरी पन्पे को पलटती हुई तनिक विश्राम हेतु कम्पायमान अंगुलियो की कलम अब कलमदान की ओर बढ़ रही है।
पुत्र योगेश सहित परिजनो के चिरप्रतीक्षारत सजल नयन, आँखे मे उमडते सावन-भादवो की घनघोर घटाअसे को बड़ी बेसब्री से संभालती हुई दहलीज पर खड़ी वृद्ध माँ ओर पुत्रियाँ आशा, निशा, रानी के अवस्द्व कण्ठो के सुरीले स्वागत-गीत, पौत्र-पौत्री दक्षराज उर्फ चिडि़याँ और कनिष्क के कंजकरो मे सुशोभित मौन विजय मालाण्ं, ढोल-नगाड़ो की हर्षवर्धक सांकेतिक ध्वनियाँ मुखारविन्द पर बहुरंगी गुलाल, करकमलो मे शोभायमान फलस्वरूप श्रीफल उक्त सभी धुप-छाया की भंाति सुख-दुःख सम्मिलित जीवन वन की समस्त संचित अनुभूतियाँ ही इस आंथिक शाब्दिक-अभिानन्दन को पूर्णता प्रदान करती हुई प्रतीत हो रही है।
सवा पैतीस वर्षो का सरकारी सफर पूर्ण कर सकल बंधनो से नैसर्गिक मुक्ति ले अस्ताचल की ओर बढ़ता हुआ क्षिप्रगामी ताम्रवर्णी तनिक क्लान्त सा यी अथक दिनकर सागर की लहरो का हमराज बनकर कारवां से दूर आज इस लवाजमे की तमाम नजरो से ओझल होने को आतुर लगता है। हीरक हार सी सुजज्जित तमस की श्यामल सेज पर तनिक विश्रामोपरान्त कल भौर की स्वर्णिम रश्मियाँ क्रमथः कर्म रेखाओ मे प्रारब्धानुसार परिवर्तन करती हुई नियमित स्वाध्याय, समाज सेवा, ईश्वरोपासना की ओर आनको सतत अग्रेषित करती रहेगी, विद्यालय परिवार की यही कोटि-कोटि शुभकामनाएँ है।