अभिनन्दन-पत्र
श्रीमती गुणमाला जैन,
प्रधानाचार्य
रा.बा.उ.मा.वि. स्टेशन, चित्तौड़गढ़
मालवांचल का महानगर, मायानगरी का अनुज, अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों से सुसज्जित, अनन्तप्रगति पथ का अहर्निष धावक, शील से विकासषील, सतरंगी सृजनधर्मिता का अतिसक्रिय स्थल, नैसर्गिंक सौन्दर्य का अक्षय भण्डार, रेल- मार्ग का मकड़ शाजाल, कोटि-कोटि नयनों का त्राटक बिन्दु, होल्कर सक की योग्य उत्तराधिकारिणी सुषासिका देवी अहिल्या की गौरव-गाथाओं से सतत् अनुगुंजित सदासुखद इन्दौर महानगर निवासी जैन सम्प्रदाय के लोढ़ा कुलश्रेश्ठ अथक कर्मवीर स्व. श्री रूपचन्द लोढ़ा, एवं श्रीमती गौरी बाई की सुकन्या ,दुर्लभ गुणों की खान,अनन्त आभा युक्त मुक्तावली की भांति, शीतल , स्नेहिल, अक्षय गुणों की माला ‘गुणमाला’ का जन्म दिनांक 18.01.1958 को राजस्थान के झालावाड़ षहर में हुआ।
अक्षरब्रह्म की आराधिका, माँ शारदा के पावन मन्दिर की अबूझ ज्ञान-पिपासु, अनन्त की ओर आकर्शित सतत् प्रज्वलित इस मौन दीपिका के स्वर्णिम ज्योतिर्मयी दीपषिखा ने षिक्षा के प्रथम सोपान से ही स्वानुषासन की अन्तर्षक्ति से निरंतर बढ़ना सीखा। शहर के बहुचर्चित महाविद्यालय, गल्र्स डिग्री काॅलेज से आपने सन् 1977 में कला संकाय में स्नातक, सन् 1979 में स्नातकोत्तर ( हिन्दी ), बी.एड. काॅलेज इन्दौर से सन् 1981 में बी.एड. की उपाधि प्राप्त की। इस समग्र षिक्षा में एम.पी.विद्युत बोर्ड में यू.डी.सी. पद पर कार्यरत एम.ए.एल.एल.बी. डिग्रीधारी, काव्यरसिक, जो षौकियाना तौर से कई सम्पादकीय कार्यों से भी जुडे़ रहे, स्व.श्री रूपचन्दजी जैन जिनकी सतत् प्रेरणा, समयानुकूल उत्साहवर्धन, षुभकामनाएं और ममतामयी माता गौरीबाई की षुभाषीशमयी उच्चाकांक्षाएं आपके षैक्षिक जीवन के कंटकाकीर्ण मार्गों पर परछाई की भाॅति सषक्त सहयोगिनी बनकर सदैव साथ चलती रही।
दिनांक 3 फरवरी, 1982 को टोंक निवासी श्री मूलचन्द जी पालेचा के प्रथम पुत्र श्रीचन्द्रप्रकाष जी के संग पावन परिणयोत्सवान्तर्गत जीवन पथ पर संग चलने का गठबंधन हुआ। दिनांक 01.03.1983 को पुत्र रत्न हिमांषु के जन्म के साथ ही गृहस्थाश्रम के अनन्त वांगमय का प्रथम अध्याय पूर्ण हुआ। दिनांक 01.05.1984 को पुत्री प्रियंका के जन्मोत्सव के गीतों की संगीतमय सुरीली ध्वनियों ने आपको अपनी किषोरावस्था के पुनरागमन के साथ ही सुखद बहुरंगी अतीत की अनेक स्मृतियों को जीवंत कर दिया। दिनांक 16 फरवरी 1985 को उदयाचल के बालरवि की स्वर्णिम रष्मियों में सफलता रूपी नवजात षिषु की आल्हादित किलकारियों ने आपके मन उपवन को ऋतुराज बना दिया। उसी दिन तृतीय श्रेणी अध्यापक पद से आपकी राजकीय यात्रा का आगाज हुआ।
कर्म-भूमि के प्रगति पथ पर साधना के सारथी ने अभी संयम की लगाम थामी ही थी कि दिनांक 15.07.1985 को देवागंना सी षुभ घड़ी प्रारब्ध की थाली में प्राध्यापक का चयनोपहार सजाती हुई प्रकट हुई। आर.पी.एस.सी. से चयनोपरान्त 13 वर्शों के लिए आप रा.बा.उ.मा.वि.षहर चित्तौड़गढ़ पधारी जहां हस्तलिखित पत्रिका प्रतियोगिता में प्रति वर्श जिला एवं मण्डल स्तर पर प्रथम एवं राज्य स्तर पर दो बार प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए चित्तौडगढ़ जिले के गौरव और स्वयं के लेखन-कौषल में अभिवृद्धि की, यहीं रहते हुए विद्यालय की गाइड्स के साथ सन् 1987 में अन्तर्राश्ट्रीय जम्बूरी सिकन्दराबाद एवं सन् 1989 में राश्ट्रीय जंबूरी भोपाल में भाग लेकर जन-जन में सेवा-कार्य एवं विष्वबन्धुत्व की भावना को बढ़ाया। यहां से स्थानान्तरित होकर दो माह के लिए आप रा.बा.उ.मा.वि. कपासन गई, जहाँ से दिनांक 28.08.1998 को चयनोपरान्त डाईट में 15 वर्शों तक षिक्षक प्रषिक्षक के मुख्य कार्य के साथ-साथ आपने आई.एफ.आई.सी. प्रभाग के अन्तर्गत प्रकाषन कार्यों में विषेश रूचि लेते हुए फोल्डर, बुकलेट के प्रकाषनार्थ मुख्य उत्तरदायित्वों का निर्वहन किया। ‘कर्मण्यवादीकारस्ते माँ फलेशु कदाचन’ की उक्ति के उच्च स्तरीय दर्षन को आत्मसात् करते हुए आपने पाँच जिला स्तरीय षोध कार्य पूर्ण किए। सन् 1994 में हिमाचल प्रदेष से एम.एड. की उपाधि प्राप्त करते हुए अपने व्यावसायिक ज्ञानानुभव मेें आषातीत अभिवृद्धि की। सन् 2007 डाईट में आपका वरिश्ठ व्याख्याता के पद पर विभागीय चयन हुआ।
दिनांक 11.05.2013 को प्रधानाचार्य पद पर रा.बा.उ.मा.वि.स्टेषन पधारी। जहां 14 माह की अल्पकालीन सेवा अवधि के साथ ही जीवन सरगम के सुर बदले। परमपिता परमेष्वर के अनन्त हाथों की अंगुलियों से बन्धे हुए अदृष्य धागों के निरंकारी आकर्शण के गहन चिन्तन के साथ ही अन्तःकरण के महासागर में यदा-कदा कई लहरें उद्वेलित होती रही। पारिवारिक मानस मंथनोपरान्त प्राप्त वैचारिक नवनीत ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के निर्णय की सराहना करते हुए त्वरित क्रियान्विति हेतु प्रेरित किया।
29 वर्शीय गौरवमयी सेवा अवधि पूर्ण कर वीणापाणि के चरणारविन्दों की यह अनन्य अनुरागिनी अन्तर्मुखी हो आज जीवनारण्य में सुख-दुख मिश्रित भांत-भांत के उठते चक्रवातों को, महासागर में हठी बालक की भांति मचलते स्वछन्द हिलोरों को येन-केन-प्रकारेण सम्भालती हुई, चहुं ओर समग्र अविस्मरणीय स्मृतियों का प्रज्ञा-चक्षुओं से अवलोकन कर,अवरूद्ध कंठ से, नैनों के गंगाजल से विदाई ताप से मुरझाई इन कारूणिक प्रेम वल्लरियों का पूर्णापूर्ण सिंचन करती हुई, राजकीय सेवाकाल के इस सारगर्भित अन्तिम उद्बोधन के चंद षब्दों में ही सबकुछ कह देने का साहस जुटाती हुई ‘गागर में सागर’ की उक्ति को सार्थक करती हुई कुछ स्मृति-चिन्हों के सहारे समस्त राजकीय बन्धनों से मुक्त हो, थके हुए पंखों से फिर अथक उड़ान भरती हुई नीलगगन की यह प्रिया कोकिला अब अस्ताचल में ढ़लते सूरज को तकती है। जहां स्वनिर्मित नीड़ से मुँह निकाले झांक रहे हिमांषु- प्रियंका- प्रेक्षा, प्रियंका-नवनीत-श्रेयांषी जिनके करकमलों में बहुरंगी विजयमालाएं आपके पुनरागमन की प्रतीक्षा कर रही है। सेवानिवृत्ति उपरान्त आप अधिकाधिक स्वाध्याय, चिन्तन, मनन, साधना, लेखन इत्यादि कई धार्मिक कार्यक्रमों में अधिकाधिक समय देते हुए इस जीवन-कंचन को कुंदन बनाने में पूर्णतः सफल होएंगी। इन्हीं कोटि-कोटि षुभ कामनाओं के साथ समस्त आत्मीयजनों की ओर से आपको पुनःप्रणाम।
सेवारम्भ सन् 1985 |
दिनांक 3 फरवरी, 1982 को टोंक निवासी श्री मूलचन्द जी पालेचा के प्रथम पुत्र श्रीचन्द्रप्रकाष जी के संग पावन परिणयोत्सवान्तर्गत जीवन पथ पर संग चलने का गठबंधन हुआ। दिनांक 01.03.1983 को पुत्र रत्न हिमांषु के जन्म के साथ ही गृहस्थाश्रम के अनन्त वांगमय का प्रथम अध्याय पूर्ण हुआ। दिनांक 01.05.1984 को पुत्री प्रियंका के जन्मोत्सव के गीतों की संगीतमय सुरीली ध्वनियों ने आपको अपनी किषोरावस्था के पुनरागमन के साथ ही सुखद बहुरंगी अतीत की अनेक स्मृतियों को जीवंत कर दिया। दिनांक 16 फरवरी 1985 को उदयाचल के बालरवि की स्वर्णिम रष्मियों में सफलता रूपी नवजात षिषु की आल्हादित किलकारियों ने आपके मन उपवन को ऋतुराज बना दिया। उसी दिन तृतीय श्रेणी अध्यापक पद से आपकी राजकीय यात्रा का आगाज हुआ।
कर्म-भूमि के प्रगति पथ पर साधना के सारथी ने अभी संयम की लगाम थामी ही थी कि दिनांक 15.07.1985 को देवागंना सी षुभ घड़ी प्रारब्ध की थाली में प्राध्यापक का चयनोपहार सजाती हुई प्रकट हुई। आर.पी.एस.सी. से चयनोपरान्त 13 वर्शों के लिए आप रा.बा.उ.मा.वि.षहर चित्तौड़गढ़ पधारी जहां हस्तलिखित पत्रिका प्रतियोगिता में प्रति वर्श जिला एवं मण्डल स्तर पर प्रथम एवं राज्य स्तर पर दो बार प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए चित्तौडगढ़ जिले के गौरव और स्वयं के लेखन-कौषल में अभिवृद्धि की, यहीं रहते हुए विद्यालय की गाइड्स के साथ सन् 1987 में अन्तर्राश्ट्रीय जम्बूरी सिकन्दराबाद एवं सन् 1989 में राश्ट्रीय जंबूरी भोपाल में भाग लेकर जन-जन में सेवा-कार्य एवं विष्वबन्धुत्व की भावना को बढ़ाया। यहां से स्थानान्तरित होकर दो माह के लिए आप रा.बा.उ.मा.वि. कपासन गई, जहाँ से दिनांक 28.08.1998 को चयनोपरान्त डाईट में 15 वर्शों तक षिक्षक प्रषिक्षक के मुख्य कार्य के साथ-साथ आपने आई.एफ.आई.सी. प्रभाग के अन्तर्गत प्रकाषन कार्यों में विषेश रूचि लेते हुए फोल्डर, बुकलेट के प्रकाषनार्थ मुख्य उत्तरदायित्वों का निर्वहन किया। ‘कर्मण्यवादीकारस्ते माँ फलेशु कदाचन’ की उक्ति के उच्च स्तरीय दर्षन को आत्मसात् करते हुए आपने पाँच जिला स्तरीय षोध कार्य पूर्ण किए। सन् 1994 में हिमाचल प्रदेष से एम.एड. की उपाधि प्राप्त करते हुए अपने व्यावसायिक ज्ञानानुभव मेें आषातीत अभिवृद्धि की। सन् 2007 डाईट में आपका वरिश्ठ व्याख्याता के पद पर विभागीय चयन हुआ।
दिनांक 11.05.2013 को प्रधानाचार्य पद पर रा.बा.उ.मा.वि.स्टेषन पधारी। जहां 14 माह की अल्पकालीन सेवा अवधि के साथ ही जीवन सरगम के सुर बदले। परमपिता परमेष्वर के अनन्त हाथों की अंगुलियों से बन्धे हुए अदृष्य धागों के निरंकारी आकर्शण के गहन चिन्तन के साथ ही अन्तःकरण के महासागर में यदा-कदा कई लहरें उद्वेलित होती रही। पारिवारिक मानस मंथनोपरान्त प्राप्त वैचारिक नवनीत ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के निर्णय की सराहना करते हुए त्वरित क्रियान्विति हेतु प्रेरित किया।
सेवानिवृत्ति सन् 2014 |
Abhinandan Patra : Gunmala Jain Chittorgarh |