पत्थर के पुजारी ( Pathar Ke Pujari ) : Chhagan Lal Ji Kumawat

Let. Sh. Chhagan Lal Ji Nahar
( Kumawat)  Chittorgarh
पुण्य स्मरण
पत्थर के पुजारी
छगन लाल जी नाहर कुमावत


   अनन्त शौर्यवान, अक्षुण्ण ऊर्जावान समर शिरोमणि सांगा की तलवार की टंकार और भक्तिमयी मीरां के घुंघरुओं के समेकित स्वरों से सतत अनुगंूजित अजर-अमर एवं अक्षय यौवना वीर प्रसूता चित्तौड़ नगरी के निवासी कुमावत क्षत्रिय समाज के समस्त सुवासित सतरंगी पुष्पों की बहुरंगी वाटिका में एक फूल को स्व. चम्पालाल नाहर के नाम से पुकारा जाता था। उनका विवाह बिनोता निवासी स्व. श्री गंगाराम जी पालरिया की सुपुत्री नाथीबाई के साथ सम्पन्न हुआ। ‘एकः चन्द्र तमो हन्ति’ की उक्ति को चरितार्थ करते हुए नाथीबाई अपनी सम्पूर्ण ममता इकलौते पुत्र स्व. श्री छगनलाल के नैसर्गिक बचपन पर न्यौछावर कर भवसागर पार कर गई।
            लौकिक रंगमंच पर नाचने को विवश हम सांसारिक कठपुतलियां विधाता की अंगुलियों से जीवनपर्यन्त बंधे अपने अदृश्य धागों को कहां देख पाती हंै। जीवन सरगम के फिर सुर बदले।  समीपस्थ घटियावली निवासी स्व. हीराजी सुंवारिया की बेटी स्व. भूरी ने स्व. चम्पालाल जी की जीवन यात्रा को उसी दिशा में एक नई गति प्रदान कर स्व. चम्पालाल जी की द्वितीय जीवनसंगिनी बनी। अब इस नाहर कुल में कुल - श्री घीसूलाल जी, श्रीमती कैलाशीबाई सहित स्व. छगनलाल जी तीन भाई बहिन हो गए।
            वक्त का कारवां आगे बढ़ता है और समय का सारथी मुखमण्डल पर शोभायमान नवांकुरित की भांति मूंछों की श्यामल रेखाओं को दुर्ग की प्राचीरों से आती हुई शहनाइयों की मनभावन धुन सुनाकर पीपली चैक स्थित स्व. रोडूलाल जी कुमावत की गृहस्थ फुलवारी की प्रथम कलिका स्व. चुन्नीबाई के संग पाणिग्रहण संस्कार हेतु एक आत्मीय आमंत्रण दिया, जिसके अन्तिम चरण में श्री केसरीमल, श्रीमती प्यारीबाई, श्री घनश्याम, श्रीमती घटू, श्रीमती रामकन्या एवं समस्त परिजनों ने विदाई गीत के साथ अपने सजल नयनों को पौंछते हुए इस वृहद सामाजिक उत्तरदायित्व को पूर्ण किया।
            शहर में सर्वचर्चित तत्कालीन शिक्षक चन्दनपुरा निवासी स्व. गणेशलाल जी ब्राह्मण के यहां प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण कर सम्वत् 2005 से ही अपने पारम्परिक शिल्प कार्य को जीविकोपार्जन का मुख्य आधार बनाते हुए जीवन संगिनी की हथेलियों की गीली महेन्दी से मौन स्वीकृति ले गज, हथौड़ा, छैनी, टांकी, करणी, सूत-सावेल आदि औजारों का थैला कंधे पर धर शीघ्रागमन का वादा करते हुए आपने न जाने किस अबूझ मुहूर्त में प्रस्थान किया कि लगभग 40 वर्षों तलक परदेस में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न प्रकार के निर्माण-कार्यों में लगे रहे। नारायणगढ़ के पास स्थित गांव बूढ़ा जहां आपने 2 जुग यानी की 24 वर्षों तक अनवरत भवन-निर्माण कार्य किया।
            सम्वत् 2012-13 में स्व. श्री राधाकिशन जी बारीवाल के सान्निध्य में चित्तौड़गढ़ शहर से कपासन रोड़ पर स्थित झांतलामाता मन्दिर-निर्माण में और भीलवाड़ा जिले के अरहरे गांव के मन्दिर में भी आपको कार्य करने का सौभाग्य मिला।
            अहमदाबाद स्थित आनन्दजी कल्याणजी की मुख्य पेड़ी द्वारा संचालित निर्माण-कार्य स्थल राजसमंद जिले के आमेट एवं नीमच जिले के चीताखेड़ा और मल्हारगढ़ गांव में आपको स्व. रोडूलाल जी, स्व. बंशी जी और स्व. भेरूलाल जी मोरवाल, भीण्डर वाले का भरपूर सान्निध्य मिला। ससुर जी एवं मिस्त्री जी स्व. रोडूलाल जी के साथ आपने दुर्ग पर भी कार्य किया। आप विशेषतः मन्दिरों के गोल गुम्बज बनाने के निष्णात शिल्पकार थे।

            सीखने-सिखाने की इस शाश्वत पावन प्रक्रिया में श्री जगनाथ हुंवारिया (घटियावली), श्री जगदीश जी, श्री नोला जी गायरी (दुर्ग), नानालाल जी (गोपालनगर) आदि अनेक आपके प्रिय शिष्य रहे। चित्तौड़गढ़ शहर के गांधीनगर में आपने लगभग 20 से अधिक आवासीय भवनों का निर्माण-कार्य एवं देखरेख करते हुए उन्हें पूर्ण किया।
            शहर फतहनगर के उदयपुर रोड़ पर स्थित लोकप्रिय देवता धूणीवाले बावजी की विशेष देवानुकम्पा से सात लड़कियों के बाद पुत्र रूप में जन्मी आठवीं सन्तान को श्री किशनलाल के नाम से पुकारा जाता, जिनका विवाह स्व. श्री बंशीलाल जी गेंदर की तीसरी पुत्री श्रीमती अणछीबाई के साथ सम्पन्न हुआ। काना, बन्टी और शीतल आपके यशस्वी पुत्र-पुत्री हैं। बड़ी बहिन मोहनीबाई, स्व. श्री गिरधारीलाल जी के ज्येष्ठ पुत्र श्री बालचन्द जी गेंदर को ब्याही, साथ ही छोटी बहिन कंचनदेवी को स्व. रतनलाल जी चंगेरिया (छोटीसादड़ी वाले) के द्वितीय पुत्र श्री अमृतलाल चंगेरिया को ब्याही। ओमप्रकाश, चन्द्रप्रकाश, दिलीप, अनिता (गेंदर) एवं यशोदा, नीलम, चन्द्रशेखर और चेतन (चंगेरिया) स्व. श्री छगनलाल जी के दोहिते-दोहिती हैं। रोली, प्रियांशी, श्रीया, दिव्यांशी, मनस्वी परी, वंशराज आपके पड़ दोहिते-दोहिती हंै। इनके मधुर स्वरों से सभी के अन्तर्मन सदैव आनन्दित रहते है। प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नानादि से निवृत्त हो देव दर्शनार्थ फूल-पत्ती लेने बाग-बागीचे जाना और चारभुजा मंदिर में प्रसाद एवं तुलसी पत्र चढ़ाना आपकी दिनचर्या के अभिन्न पहलू रहे। 
            50 वर्षों तक प्रतिदिन पसीने की बून्दों से मौन जलाभिषेक करने वाले पत्थर के इस पावन पुजारी से एक दिन अचानक ही पत्थर के सनम रूठ गए। आपकी ही छैनी-हथौड़ी से विषबाण की भाँति उछली एक टाप (पत्थर का एक छोटा सा टुकड़ा) आतंकवादी की तरह चुभ गई दायी आँख में। दूसरी आँख से पत्थर, मकान और मकानमालिक की जगह अब केवल आँखों के डाॅक्टर कम्पाउण्डर ही दिखाई देने लगें। लम्बे समय से नाना प्रकार के उपचार अभी चल ही रहे थे कि कैंसर के मर्ज ने इनके बचे-खुचे लघूत्तम सुख सदन का मुख्य द्वार खटखटा दिया। सालाजी श्री केसरीमल जी ने सहोदर से भी बढ़कर आपकी सेवा-सुश्रूषा करते हुए चार माह से अधिक समय तक अहमदाबाद रहते हुए सन 2001 मंे कैंसर रुपी दानव का पूर्णतः संहार कर लंका विजयोपरान्त राम-लक्ष्मण की भाँति प्रसन्न मुद्रा में चित्तौड़गढ लौटे।
            इसी वर्ष दिनांक 1 अप्रेल 2013 को आपकी जीवन संगिनी स्व.चुन्नी बाई इस असार संसार को छोड़कर अनंत तारापथ की अनुगामिनी हो गई। उस मानसिक आघात से आप अभी उबर ही नहीं पाए थे कि दिनांक 23.11.2013 को निजी आवास के बरामदे में उठते वक्त पुनः गिर जाने से कुल्हे की हड्डी टूट गई। इकलोते पुत्र श्री किशन लाल ने तब से ही अपने पूज्य पिताजी की अवर्णनीय सेवा करते हुए पितृ-भक्ति की एक मिसाल कायम की। सतत् प्रगतिशील 85 वर्षीय एक पहियें पर चलता हुआ वह जीवनरथ अब लड़खड़ाने लगा। तब से अनवरत जिजीविषा की उत्कंठा और जीवनज्योति स्वतः मंद से मंदतर होती रही। दिनांक 10.12.2013 की दोपहरी भी अभी दूर थी कि आपके प्राणपखेरू हम सब को छोड़कर महाप्रयाण कर गए।

Punya Smaran
Let. Sh. Chhagan Lal Ji Nahar (Kumawat)
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