अभिनन्दन पत्र : रमेश चन्द्र शर्मा रमेश चन्द्र


Ramesh Chandra Sharma
शक्ति-भक्ति की आँखो का तारा, अनुपम, अवर्णनीय, हर समरांगण का चिरस्मरणीय रण बाँकुरा, वीर-शिरोमणि, शूर सम्राट, गढ़राज चित्तौड़गढ़ का हर अमृत वेला में अमृतमयी, आनन्दवर्धक स्फूर्तिदायी, मलयानिल सदृश्य सुवासित शीतल बयार से सतत् पवनाभिषेक हेतु आतुर रहने वाला अरावली श्रृंखलाओं की लघु उपत्यकाओं की गोद में मुस्कुराते हुए हरित क्रान्ति के अग्रदूत, पुरुषार्थी चेहरों के जनसमूह से सृजित जिला मुख्यालय चित्तौड़गढ़ के पूर्वी-उत्तरी दिशा में स्थित बसी अभ्यारण का एक छोटा सा गाँव जिसको संभवत: मौखिक उच्चारण की सुविधाओं के कारण 'विजयपुर' से परिवर्तित करते हुए आज कल बिजयपुरनाम से पुकारा जाता है।

इस धाकड़ बाहुल्य अँचल में सदियों से ब्रह्म-ज्योतिमयी प्रज्ज्वलित शाश्वत ज्ञान-मशालें ब्राह्मण परिवारों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरण की अनवरत नैसर्गिक श्रृंखला में माता पार्वती एवं पिता श्रीराम ढ्याल (वनपाल वन विभाग गुर्जर गौड़ ब्राह्मण) की गृहस्थ पर्णकुटी में बड़ी बहिन पुष्पा के पश्चात् दिनांक 02/02/1958 को कैलाश और अशोक का अग्रज रमेश चन्द्र नामक क्षत्रिय गुणों से अलंकृत, कूल-भूषण के रूप में एक ऐसा कूल-दीपक प्रज्ज्वलित हुआ जिसने अपनी स्वर्णिम रश्मियों से शिक्षा विभाग पी वट वृक्ष की खेल-शाखा के नवपल्लव रुपी कोटि-कोटि बचपनों में नवाचार युक्त कईस्वास्थ्यवर्धकचिंतनों के सतत् सम्प्रेषण के सुखद परिणामस्वरुप खेलों के प्रति ऐसा आकर्षण जगा कि आपके कई कटिबद्ध शिष्यगण आज विभिन्न उच्च पदों पर पदासीन होकर पूर्ण सक्रियता के साथ दीप-स्तम्भ की भाँति समग्र खेल-जगत को आलोकित करने में अहर्निश प्रयत्नशील हैं।

जन्म स्थान विजयपुर से ही उ0 प्रा0 शिक्षा पूर्णोपरान्त निकटस्थ रा0 मा0 वि0 बस्सी में अध्ययन करके सन् 1975 में 11 वीं कक्षा उत्तीर्ण कर सन् 1980 में पूना बोई (महाराष्ट्र) से सी0 पी0 एड0 की डिग्री प्राप्त की। दिनांक 15/01/1981 को राजयोग के रथ पर सवार हो स्वर्णिम रश्मियों से सुसज्जित महा तेजस्वी एक नूरानी चेहरे वाला अपनी ही मस्ती में इनूमता-नाचता-गाता हुआ अनन्त आल्हादित मदमस्त दिनकर जवाँ डाकिये सा, लगता बहुत दूर से आया चलकर, पल भर ठहर कर एक खाली लिफाफा थमा कर जिला चित्तौड़गढ़ के रा0 मा0 वि0 रुढ में प्रथम नियुक्ति का राज्या आदेश देकर किसी अगले खुशनसीब बन्दे से तत्काल मुखातिब होने की बेचेनी में अनजान मुसाफिर की तरह रफ्ता-रफ्ता बहुत आगे बढ़ गया।


दिनांक 24/01/1973 को जिन्दगी के सफर को कई तरह की खुशबुओं और खूबसुरतियों से नवाजने के वास्ते पत्थर की खदानों वाले गाँव बिनोताकी पथरीली भूमि में पली-पोशी (श्री मॉगी लाल जी एवं स्व0 श्रीमती दुर्गा देवी) की अनन्त लाड़ली बेटी पूर्णिमा के चाँद सा मुखाड़ा नवनीत जैसे हृदय कमल वाली नई ऊषा का संचार करती हुई पाणिग्रहणोपरान्त पति चरणानुरागिनी रानी स्वरुपा ऊषा रानी का आगमन हुआ, जिसने कालान्तर में एक पुत्री सफलता उर्फ 'लघुता और पुत्र भैरव प्रकाश उर्फ ‘लाला को जन्म देकर अनन्तकाल से चली आ रही वंश वृद्धि रुपी सतत् श्रृंखला की एक सफल कडी बन कर गरिमामयी नारीत्व की अपेक्षित पूर्णताएँ प्राप्त की। दिनांक 08/05/2013 को 24 वर्ष तक राजकीय सेवा से अध्यापिका पद को सुशोभित करती हुई सभी को इस पार छोड़ कर अचानक संसार सागर के उस पार चली गई।

खेल-जगत का यह चमकीला हीरा माँ वीणा पाणि का चरणानुरागी, शिवोपासक, अनन्त ज्ञान पिपासा युक्त आपके विद्यार्थी मन ने विचित्र सम विषम परिस्थितियों में भी अनवरत अध्ययनशील रहते हुए सन् 1989 में स्नातक, 1993 में अधिस्नातक (हिन्दी), सन् 1997 में बी0 एड0 कर शैक्षिक-प्रशैक्षिक विभागीय उपाधियां प्राप्त की। प्रथम नियुक्ति रा00 मा0 वि0 रुढ़ में 22 वर्षों की सेवा उपरान्त 11 माह के लिए रा0 मा0 वि0 कन्नौज, रा00 मा0 वि0 बस्सी में 2 माह, 10 वर्षों के लिए अरनियापंथ, 10 वर्षों के लिए रा0 पुरुषार्थी मा0 वि0 चित्तौड़गढ़ में अपनी उल्लेखनीय सेवाकाल के पश्चात् 7 माह के लिए रा0 मा0 वि0 सादी में रहते हुए अपने ही अँचल के शैक्षिक जगत को गौरवान्वित किया। दिनांक 12/02/2004 से दिनांक 26/06/2015 तकरा00 मा0 वि0सावा में 11 वर्ष की सराहनीय सेवाओं के साथ उसी दिन दिनांक 26/06/2015 को 2 वर्ष 8 माह के लिए आप रा00 मा0 वि0 ऐराल पधारे जो आपकी राजकीय यात्रा वृतान्त वाङमय का अन्तिम सोपान सिद्ध हुआ। खो-खो, बेडमिन्टन और क्रिकेट के इस चर्चित खिलाड़ी ने अपने 2 वर्षों तक जि0 शिा0 अधि0 कार्यालय में भी उल्लेखनीय सेवाएं दी। इसके साथ ही राज्य स्तर की विभिन्न प्रतियोगिताओं में सराहनीय निर्णायक की भूमिका निभाते हुए कई खेल प्रतिभाओं को तराशते हुए इस कदर दिशा-निर्देश एवं प्रोत्साहन देते रहें कि उन्हें कदम-कदम पर विजय श्री प्राप्त होती रही। 

37 वर्ष 01 माह 13 दिन की राजकीय यात्रा से जुड़ी हुई समग्र इन्द्र धनुषी स्मृतियों से सृजित मकड़झाल के महापूँज से उत्पन्न उहा-पोह के ज्वार-भाटे की तरह वैचारिक प्रवाह के महा विचलन को संयमित करके प्रकटातुर अप्रकट गुढ़तम् भावाभिव्यक्ति से उत्पन्न अनुप्रवाह को अवरुद्ध कर वाक्कला का धनी हृदयविदारक विदाई-वेला में आज पूर्णत: अवाक् है।

पीढ़ियों के अन्तराल से उत्पन्न बहुरंगी विहंगम परिवेश में सजल नयनों से नील गगन में घोसलों की ओर लौटते पखेरुओं के सिमटते पंखों से रफ्ता-रफ्ता घटती रफ्तार को कबूल करता हुआ अश्रु जल से रक्तिम नयनों का अंतिम श्रृंगार कर आम्रपल्लव की घनी छाया तले पकी फसल के खेत की मेढ़पर बैठा पूर्णत: आशान्वित प्रौढ़ कृषक की भाँति थका-थका सा यह अथक दिनकर दिवसावसान की व्याकुलता में अब अस्ताचल में ढ़लता है। इस यकीन के साथ कि नींद, यानिकी एक छोटे से लम्हे के बाद इस रात की कालिमा का आखिरी हिस्सा, बेशक कल सुबह फिर भोर के स्वर्णिम उजाले में तब्दील हो जाएगा और मैं मुस्कुराते हुए दिल से खेरमदम करूँगा, नई शुरुआत नए सफरनामें के वास्ते।

आवास के मुख्य द्वार पर प्रतीक्षातुर खाडे परिजन संध्या सुन्दरी के सानिध्य में महाविजयोत्सव के शुभारम्भ हेतु व्याकुलता से पलके बिछाए निहार रहे, आशुतोष, वासु, हार्दिक, मीताक्षरी, हेमलता, भैरव प्रकाश, वाचिक आशीर्वाद हेतु लड़खड़ाती पिताश्री रामदयाल शर्मा की वात्सल्यमयी वाणी और लाड़ लड़ाने को आतुर काँपते हाथ, कोकिल कंठों से विजय गीत का समूहगान और अनन्त आत्मियता युक्त परिजनों की कोटि-कोटि शुभकामनाएँ आपके शतायु होने की मंगलाकांक्षी है।

आप अधिकाधिक समय, ईश्वर-भजन, समाज-सेवा, राष्ट्र-सेवा इत्यादि अनेकानेक सेवा-कार्यों में व्यतीत करने में सफलता अर्जित कर सकें, इन्हीं कोटि-कोटि शुभकामनाओं के साथ आपके अपने............सभी स्नेहिल आत्मीय जन।

दिनांक-28 फरवरी 2018






रचनाकार कवि - अमृत वाणी' चित्तौड़गढ़

(अमृत लाल चंगेरिया)

मो. - 9414735075