Shree Randhir Singh Suhag


अभिनन्दन-पत्र 
श्री रणधीरसिंह सुहाग
विद्यालय परिवार, रा.उ.मा.वि., सैंती, जिला-चित्तौड़गढ़ (राज.)

धन धान्य का अथाह भण्डार, हरियाली से भरपूर हरियाणा राज्य के झझ्झर जिले की बेरी तहसील में बिसाहन, लगभग 500 परिवारों का सुसम्पन्न एवं प्रसिद्ध गाँव है। जहाँ के घरों में बेटे मात्र मातृभूमि पर न्यौछावर होने के वास्ते ही जन्म लेते हैं। ‘सुहाग’ कुल का राष्ट्रीय गौरव चित्तौड़गढ़ सैनिक स्कूल का उत्कृष्ट मेघावी छात्र श्री दलवीरसिंह सुहाग थल सेनाध्यक्ष के पद पर देश के स्वातन्त्र्योत्तर इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखी जाने वाली चिरस्मरणीय सेवाओं के वास्ते अद्य दिवस कत्र्तव्यारूढ़ है।
बिसाहन के मूल निवासी आंग्ल-उर्दू और हरियाणवी भाषाओं के सफल जादूगर, करतार की भांति सतत् सृजनशील स्व. श्री करतारसिंह सुहाग सेमी गवर्नमेन्ट द्वारा संचालित एक रोड़ कन्स्ट्रक्शन कम्पनी में कार्यालयाध्यक्ष के पद पर कार्य करते हुए अपनी सराहनीय सेवाओं के लिए सर्वत्र सुविख्यात थे। गाँव डीघल निवासिनी एहलावत गौत्र की सुयोग्य कन्या नौकरी के कारण परदेश रहने वाले पति के उत्तरदायित्वों को भी बखूबी निभाने वाली परम सौभाग्यशालिनी स्व. श्रीमती चन्द्रपति देवी ने आपकी अद्र्धांगिनी बन रणधीरसिंह, बलराजसिंह, राजवीरसिंह, विमला, निर्मला, कमला नामक कुल छः पुत्र-पुत्रियों को जन्म दिया। आपकी गृहस्थ वाटिका में दिनांक 18/02/1954 को रणधीरसिंह सुहाग नामक ज्ञान-रश्मियों से आलोकित प्रकाश स्तम्भ की भांति सतत् ज्योतिर्मय एक ऐसा आयताकार गौरवर्णी, ओजस्वी पुष्प खिला जिसने पूरे गुलदस्ते को अपनी खुशबूओं से सराबोर कर दिया।
जन्म स्थान में ही प्राथमिक शिक्षा ले तहसील विद्यालय बैरी गए, जहाँ से उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कर, सन् 1974 में एन.आर.एस. राजकीय महाविद्यालय रोहतक से स्नातक उपाधी प्राप्त की। प्रगति पथ के इस अबुझ ज्ञान पिपासु, अथक सारथी ने मेरठ विश्वविद्यालय के दिगम्बर जैन काॅलेज बड़ोत से सन् 1977 में प्रथम श्रेणी से भूगोल विषय में स्नातकोत्तर एवं सन् 1978 में एम.डी. यूनिवर्सिटी रोहतक से बी.एड. की उपाधी उपरान्त आपके युगल नयन नौकरी रूपी नव अरूणोदय की प्रथम स्वर्णिम रश्मि से भावी अनन्त सुखद साक्षात्कार की आतुरता में उदयाचल के उच्चतम् शिखरों के तरूओं की फलदार झुकी डालियों के नवपल्लओं पर बारम्बार त्राटक करने लगे।
एन.सी.सी. ‘बी’ सर्टिफिकेट धारी श्री सुहाग की दिनांक 02/04/1982 को सर्वत्र सुवासित समग्र शब्द साधना सारे अवगंठुनों को विदीर्ण करती हुई नैसर्गिक गति से मुस्कराती हुई मुखरित हुई। नवप्रभात के मलियानिल से सुवासित ओजस्वी राजकुमार ने एक हाथ में नियुक्ति आदेश की प्रति ले दूसरे हाथ से राजभवन का भाग्योदय द्वार खटखटा कर चित्तौड़गढ़ पंचायत समिति के प्रा.वि. बराड़ा व सेमलिया की राह दिखाई।
दिनांक 19/12/1984 को तृतीय श्रेणी अध्यापक के पद पर विभागीय नियुक्ति लेकर अरनोद पंचायत समिति के रा.उ.प्रा.वि. साखथली थाना गए। जहाँ से स्थानान्तरित हो रा.उ.प्रा.वि. बड़ोदिया (चन्देरिया) में एक पखवाड़ा पूर्ण कर अंग्रेजी विषय में व.अ. पद पर पनोन्नत हो दिनांक 06.04.1984 रा.मा.वि. ताणा (आकोला) पधारे। वहीं 4 वर्ष 6 माह तलक उल्लेखनीय सेवाएं देते हुए 1) माह के लिए सिंहपुर, 6 दिन भट्टों का बामणिया रह कर जिला मुख्यालय की दिशा में रा.मा.वि. ओछड़ी आए। जहाँ आपने एक जुग तक अपनी ऐतिहासिक सेवाएं दी।
दिनांक 10/11/2000 को सेवाकाल की द्वितीय पदोन्नति इसलिए भी अद्वितीय रही कि 6 माह तक रा.उ.मा.वि. प्रतापगढ़ में आपको आपके प्रिय विषय भूगोल शिक्षण के दौरान अनेकानेक जीर्ण-शीर्ण स्मृतियां एकाएक जीवन्त हो उठी। समीपस्थ रा.उ.मा.वि. बानसेन में दो वर्ष प्राध्यापक (भूगोल) पद पर सेवाएं देते हुए ढ़लती दोपहरी की भांति दिनांक 26/06/2003 को ऐसी शुभ घड़ी नक्षत्रों में रा.उ.मा.वि. सेंथी पधारे कि 11 वर्षोपरान्त माँ वीणा पाणि की यही पुण्यभूमि पूर्णाहूती की पावन वेदी बनी। वेदी से उठता हुआ, आज यह स्वच्छंद धूँआ निजी आवास की ओर स्वतः गतिशील हो रहा है।

‘कार्य ही पूजा है’ उक्ति को अपने रोम-रोम में आत्मसात् करते हुए हर नए-पुराने चुनौतियों पूर्ण कार्यों के लिए आप सदैव तत्पर रहे। सहशैक्षिक प्रवृत्तियों में बोर्ड प्रश्न-पत्र निर्माण, खेल प्रतिभाओं के उन्नयन हेतु राज्य स्तर पर विद्यालयी सीनियर व जूनियर वाॅलीवाल प्रतियोगिता में कण्टेजेण्ट लीडर बनकर दौसा जिले में लालसोठ जाना। शिक्षक प्रतियोगिताओं में सफल हिस्सेदारी, विद्यार्थियों के लिए केरिअर गाइडेंस, गत 5 वर्षों से जिला स्तरीय निःशुल्क पाठ्य पुस्तक के बतौर प्रभारी आपकी सराहनीय सेवाएं रही।
कई राष्ट्रीय कार्यक्रम यथा साक्षरता, जनगणना, आर्थिक गणना, पल्स पाॅलियो, सर्वशिक्षा, चुनाव कार्य आदि कई विभिन्न कार्यक्रमों में आपने एम.टी. पद पर रहते हुए श्रेष्ठ सेवाएं दी। जिला रेसला चित्तौड़गढ़ शाखा के कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष रहे एवं वर्तमान में संरक्षक पद पर कार्यरत है। हरिद्वार के पास पतंजली योग गुरु स्वामी रामदेव के सानिध्य में प्रशिक्षणोपरान्त आपने कई योग शिविर आयोजित करवा कर आम जन को स्वास्थ्य लाभ पहुँचाया।
हालांकि मेहनतकश और स्वाभिमानी नींव के खामोश पत्थर कभी कंगूरे के तलबगार नहीं होते, लेकिन पसीने से तरबतर कागजी सबूतों के खुशबूदार पुलिन्दे जब-जब भी आंला कमानो की टेबलों तक पहुँचते है तो उन्हें वाजिब इनाम, तोहफे, शाबाशियों से नवाजना, वफादार और मेहनतकश लोगों की शान को बढ़ाते रहना सरकारी महकमों के तारीफे काबिल उसूल रहे है। इसी सिलसिले में सन् 2002 में आप तहसील स्तरीय डायरी प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान पर रहे। 5 सितम्बर 1995 को साक्षरता में सराहनीय सेवाओं के लिए एस.पी. द्वारा सम्मानित हुए। सन् 2012 में राज्यस्तरीय शिक्षक प्रतियोगिताओं में भाग लिया। 5 सितम्बर 2009 को आपको जिलास्तरीय एवं 2 अक्टूबर 2012 को मण्डलस्तरीय सम्मान से आपको नवाजा गया।
32 वर्ष 2 माह 11 दिन की राजकीय यात्रा पूर्णकर अनंत श्रमबिन्दुओं से सुशोभित ताम्रवर्णी क्षीप्रगामी, अथक दिनकर के सफलता और विदाई मिश्रित हर्षातिरेक सजल रक्तारविन्दों की भांति युगल नयनों को राजप्रासादों का समय सारथी आज कानूनी पिंजरे का स्वर्ण सलाखों का द्वार खोल निजी आवास की ओर तनिक विश्राम हेतु तर्जनी से संकेत कर रहा है। जहाँ श्रीमती शुभहिता, सरिता, अम्बुज तरूण, अजय, मयंक, हार्दिक, हर्षिता, अभय, वेदांशी एवं समस्त परिजनों के पुलकित नयन पलक पावड़े बिछाए चिरप्रतिक्षारत है।
भावातिरेक से तनिक कम्पायन लेखनी से इतिश्री लिख अन्तिम हस्ताक्षरोपरान्त पलक झपकते ही कल भौर की स्वर्णिम रश्मियाँ आपकी जीवन गाथा का फिर एक नए अध्याय का शुभारम्भ करेगी। आप अधिकाधिक स्वाध्याय, अध्यापन, चिंतन, मनन, समाज सेवा, राष्ट्र सेवा, योग साधना, ईश्वर भक्ति आदि में एक अनुकरणीय कर्मयोगी की भांति प्रेरणा स्रोत सिद्ध होंगे। इन्हीं कोटि-कोटि शुभकामनाओं के साथ हम सभी शुभेच्छुओं का पुनः प्रणाम।
दिनांक: 30.05.2014

श्रद्धावनत:-
विद्यालय परिवार, रा.उ.मा.वि., 
सैंती, जिला-चित्तौड़गढ़ (राज.)


Shree Randhir Singh Suhag : Ahinandan Patra
Govt. Sen. Sec. School , Senthi, Chittorgarh (Ind.)